अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

19 April 2009

बहुत अरसा हुआ

बहुत अरसा हुआ

कुछ लिखे हुए

कुछ सोचे हुए

कुछ जाने हुए

बस भाग रहा हूँ

किसके पीछे, जाने किससे

हाथ मैं है, बस कुछ नही

बहुत अरसा हुआ

खाली है कुछ

भीतेर कहीं, शायद

क्या, मगर जानता नही

बस कभी- कभी, बेचनी महसूस करता हूँ

दुनिया की भीड़ मैं

ख़ुद को तनहा मह्सुश करता हूँ

वक्त कहाँ अब किसके पास

मुझे सुनने का मुझे पड़ने का

फिर भी यूँहीं कलम के कही पर

चाँद पंक्तिइयान लिख गए

बहुत अरसा हुआ

कुछ लिखे हुए।


प्रभात सर्द्वाल


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