बहुत अरसा हुआ
कुछ लिखे हुए
कुछ सोचे हुए
कुछ जाने हुए।
बस भाग रहा हूँ
किसके पीछे, जाने किससे
हाथ मैं है, बस कुछ नही
बहुत अरसा हुआ।
खाली है कुछ
भीतेर कहीं, शायद
क्या, मगर जानता नही
बस कभी- कभी, बेचनी महसूस करता हूँ
दुनिया की भीड़ मैं
ख़ुद को तनहा मह्सुश करता हूँ।
वक्त कहाँ अब किसके पास
मुझे सुनने का मुझे पड़ने का
फिर भी यूँहीं कलम के कही पर
चाँद पंक्तिइयान लिख गए
बहुत अरसा हुआ
कुछ लिखे हुए।
प्रभात सर्द्वाल
No comments:
Post a Comment