अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

10 October 2015


कभी कभी
बैठ के सोचता हूँ, तुझे
कभी कभी
बैठ के सोचता हूँ, तुझे


बीते दिन 
रातें वो 
साथ में तुम जो थे 
ना रही 
वो नजर 
ना रहे 
रास्ते 


फिर भी 
न  जाने क्यूँ 
एक कसक सी तो है 
आएगी तू कभी 
एक कमी सी तो है 


कभी कभी
बैठ के सोचता हूँ, तुझे
कभी कभी
बैठ के सोचता हूँ, तुझे।  

 


06 October 2014

चाँद और मैं


चाँद ऊपर से 
टकटकी लगाये 
मुझे 
देखता है 

चाँद ऊपर से 
टकटकी लगाये 
मुझे 
देखता है। 

मैं भी 
छुप छुप कर 
आँखों के कोने से 
उसे देखता हूँ 
उसे देखता हूँ । 

हम रोज मिलते हैं 
रात में 
हफ़्तों से 
सालों से 
महीनो से 

हम रोज मिलते है 
रात में 
हफ़्तों से 
 सालों से 
महीनो से। 

वो मुझसे से कहता है 
अपने दिल का हाल 
मैं उसको बतलाता हूँ 
अपने दिल का हाल 
कभी मैं रो जाता हूँ 
कभी वो रो है 
कभी मैं हंस जाता हूँ 
कभी वो हंस जाता हों। 

चाँद ऊपर से 
टकटकी लगाये 
मुझे 
देखता है।। 


(आपका प्रभात)






15 May 2014

ऐसे ही तुम कभी, आ जाओ ख्वाबों में

ऐसे ही तुम कभी
आ जाओ ख्वाबों में
आ जाओ चाहों में
आ जाओ बाँहों में
ऐसे ही तुम कभी
आ आवो ख्वाबों में।

के दिन बड़े बीत गए
देखे बिन तुझे
चाहे बिन तुझे
 छेड़े बिन तुझे
दिन बड़े बीत गए
देखे बिन तुझे।

की अब तलक याद है
वो पहली मुलाकात
तुम थी,   थी सर्द सी हवा
तुम थी, में था, और थी  हवा
आँखों में तब था डूबा
अब तलक न आया पार
की अब तलाक याद है
वो पहली मुलाकात।

13 May 2014

हरे दुप्पट्टे कि तरह

तुम लहराने लगती हो
आँखों के सामने
तुम लहराने लगती हो
आँखों के सामने
हरे दुप्पट्टे कि तरह
हरे दुपट्टे कि तरह।

तुम बाल झाड़ने जब भी
आती हो छत  हर दिन
तुम बाल झाड़ने जब भी
आती हो छत पर हर दिन
चुपके चुपके अपनी छत के दरवाजे से जानेमन



27 February 2010

सांस मेरी थम गयी


कह न पायें तुझ से ये 
की जी न पायें तेरे बिन
सांस मेरी थम गयी
दिल में तू यूं रम गयी.

करता बातें सब से मैं
सामने तेरे मगर
कह न पाता कुछ भी मैं
कर न पाता कुछ भी मैं
सांस मेरी थम गयी
दिल में तू यूं रम गयी.

अब तलक खुशहाल था
दर्द से बेजार था
तुझ से मिलना जब हुआ
इश्क का जादू चला
में भूल बेठा खुद को यूं
न शब् ढली, न में ढला
सांस मेरी थम गयी
दिल में तू यूं रम गयी.

कुछ न भाए मुझको अब
शाम हो या हो सहर
मैं दूंदता हूँ बस तुझे
तू चाह, तू ही है डगर
तेरे बिन क्या जिंदगी
तेरे बिन क्या है ख़ुशी
सांस मेरी थम गयी
दिल में तू यूं रम गयी.


प्रभात