अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

24 May 2009

मजदूर

जून की कड़कती धूप में
वो पत्थर, रेता ढोता है
गंदे बदन, फटे कपड़े
मुह मैं बीडी
जून की कड़कती धूप में

वो अकेला नही है
बीवी और बच्चे भी saath हैं
अध्नंग, नंगे पैर
जून की कड़कती धुप में।

प्रभात सर्द्वाल

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