अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसतेरहिये, मुश्कुरातेरहिये, औरजीवनकोइसीखूबसूरतीसेजीतेरहिये...आपका....प्रभात
22 April 2009
मुझे क्यूं याद आती है
मुझे क्यूं याद आती है तेरी उड़ती हुई जुल्फें तेरा उड़ता हुआ आँचल तेरा वो प्यार का संबल। हूँ अकेला आज मे इस मोजे हवादिस मे चाहतां हूँ जलक तेरी मुझे फिर रोशनाकर दे।
प्रभात सर्द्वाल
1 comment:
Anonymous
said...
Bahut accha likhte hain Prabhat ji, bas gaon ki yaad aa gayee, bas likhte rahiye. Sachin Kumar
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Bahut accha likhte hain Prabhat ji, bas gaon ki yaad aa gayee, bas likhte rahiye.
Sachin Kumar
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