अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

20 April 2009

आतंक है

आतंक है आतंक है

चहुँ और याप्त,

बस atank है।

दूर तक जाती adak पर

बह raha जो रक्त है

आतंक है आतंक है

बस आतंक है।

बस मैं फटता बम्ब है

ट्रेनों मैं उड़ता बम्ब है

बम्बों मैं उड़ता आदमी

चदता बलि बस आदमी

हअंस रहा, देखहो खड़ा

राहों मैं ये आतंक है।

चहूँ और गर कुछ याप्त है,

बस यही आतंक है।



प्रभात सर्द्वाल

1 comment:

Anonymous said...

Jis tarah apne atank ka jiker kiya hai, wo kabile tarif hai, har bar marna sirf aam admi ko padta hai
ummeed hai bhavishay mai bhi isi tarah likte rahainge

Sanjay