आतंक है आतंक है
चहुँ और याप्त,
बस atank है।
दूर तक जाती adak पर
बह raha जो रक्त है
आतंक है आतंक है
बस आतंक है।
बस मैं फटता बम्ब है
ट्रेनों मैं उड़ता बम्ब है
बम्बों मैं उड़ता आदमी
चदता बलि बस आदमी
हअंस रहा, देखहो खड़ा
राहों मैं ये आतंक है।
चहूँ और गर कुछ याप्त है,
बस यही आतंक है।
प्रभात सर्द्वाल
1 comment:
Jis tarah apne atank ka jiker kiya hai, wo kabile tarif hai, har bar marna sirf aam admi ko padta hai
ummeed hai bhavishay mai bhi isi tarah likte rahainge
Sanjay
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