अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

02 May 2009

खाने की रेडी के आगे

खाने की रेडी के आगे
खाने वालों की भीड़ के आगे
खड़ी हुई है इक बुडिया
कमर पीठ एक हैं।
खाने वाले खाना खाते
खाकर अपनी पैंट pochte
बुदिया की फिर कौन सोचते।
boodi आंखों मैं एक रोटी का स्वपन
दिल मैं पानी की प्यास
लेकर दोनों को साथ, गीर पड़ी
और मर गई, हाँ मर गई।

खाने की रेडी के आगे
खाने वालों की भीड़ के आगे।

प्रभात sardwal

1 comment:

Anonymous said...

Ek sacchhi baat ko jis tarah apne kavita mai dhala hai, bahut acchha prayash hai. Abhi aur likhiye or sudhar ki kafhi gunjayeesh hai.
Sudheer Rawat