बासत साल बीत चुके हैं मुझे आपके देश में रहते रहते
अब मैं जाना चाहता हूँ
मैं अँधेरा हूँ
मैं अँधेरा हूँ, भ्रष्टाचार का
मैं अँधेरा हूँ, अत्याचार का
मैं अँधेरा हूँ, व्यभिचार का।
भ्रस्त नेताओं का रूप लेकर आपके बीच रहता हूँ
आपकी जड़ें खोखलीं करता हूँ
आपकी कमाई अपनी बनाकर
विदेशी बैंकों को देता हूँ
मैं अँधेरा हूँ
अब आपका देश छोड़ना चाहता हूँ
कृपया मेरी मदद करें।
कैसे?
आगे बदं और वोट करें
भरष्टाचार पर चोट करें
सही आदमी को आगे बदें
ख़ुद को और इस देश को कुश्हाल बनाएँ।
बाशत साल बीत चुकें हैं।
प्रभात सर्द्वाल
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