अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

26 July 2009

तुलसी का पोधा

माँ ने लगाया है, एक तुलसी का पोधा,
घर के आंगन में,
बड़ी श्रधा के साथ,
विस्वाश है उसका,
की लायेगा, अच्छा समय और भाग्य,
ये तुलसी का पोधा।

कितनी मन्नतें, कितनी प्रअथ्नायें,
हर रोज करती है वो,
सोचती है की हर मन्नत पूरी करेगा,
उसका ये तुलसी का पोधा।

जानता हूँ सब कुछ, फिर भी,
उसके हर विश्वाश पर विश्वाश है मुझे,
उसकी हर प्राथना को हकीकत में बदल दूँगा में,
और फिर कहूँगा उससे,
की सब कुछ प्रताप है, तेरे इस तुलसी के पोधे का।

प्रभात सर्द्वाल

1 comment:

Anonymous said...

Ek anand milta hai, Prabhat jee, apki kavitayain padne main. Apki lagbhag sabhi kavitayain padi hain aur sabhi hi bahut acchhi hain.
Age bhi nirantar likhte rahiye.
Nirmala Singh