कितनी खूबसूरत है, ये चांदनी रात,
चारों और बस शान्ति है,
और अपने घर की छत पर खड़ा मैं,
चाँद निहारता हूँ।
हलकी सी ठंडक है,
जो रह-रह कर मुझे कपां देती है,
फिर भी यहाँ होना,
ये सब महसूस करना,
कितना अच्छा लगता है।
बारिस की बूंदों की टिप-टिप,
कानों को कितनी अच्छी लगती है,
हथेलियों को आगे बढाना,
और बूंदों की शीतलता को,
अपने तन-बदन मे महसूस करना,
अच्छा लगता है।
याद आ जाती हैं, यादें,
भूली-बिसरी,
वो गाँव की मिटटी,
वो गाँव का पानी।
प्रभात सर्द्वाल
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