शहर से मन उचट गया है
दिखावे से मन भर गया है
मैं अब गाँव जाना चाहता हूँ
थोड़ा सो जाना चाहता हूँ।
फिर एक बार
माँ के हाथ से रोटी खाना चाहता हूँ
गैस पर बनी बहुत खा चुका
चूले पर बनी दाल खाना चाहता हूँ
मैं अब गाँव जाना चाहता हूँ।
उमर बीत गयी सारी इस अंधी दोड़ मैं
गाँव छोड़कर, माँ छोड़कर, कुछ बन्ने की होड़ मैं
अब सब छोड़कर, छोटा बच्चा बन जाना चाहता हूँ
मैं अब गाँव जाना चाहता हूँ
थोड़ा सो जाना चाहता हूँ।
प्रभात सर्द्वाल
2 comments:
sachmuch kabhi kabhi dil karta hai ki sab tam jham chodkar wapas apne gaon chalain jayain. Apki kavita ne phir se gaon ki yaad dila dee.
Om Prakash
Liked your Hindi poems. Thanks for the visit on my blog Prabhat. Am kind of very busy or else would have spent more time here.
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