जिंदगी अब तक
खूब रही खुशगवार रही
हर हसरत मेरी परवार चढी
बस, आज अन्तिम दिन है
मेरा अन्तिम दिन।
माँ बाप, भाई-बहन सब रहे
बीवी बच्चे सब रहे
हाँ कुछ दुःख थे
मगर सुख हमेशा हज़ार रहे
लेकिन आज अन्तिम दिन है
मेरा अन्तिम दिन।
दोस्त कुछ थे, मगर हमेशा पास रहे
पड़ोसी भी हमारे दिलदार थे
मेरी गलियां, मेरी बस्ती
अभी भी याद है
लेकिन आज....
अन्तिम दिन है।
प्रभात सर्द्वाल
3 comments:
bas ji maja aa gayaa. Maut ko bhi itna khubsurat bana diya. Wakai Jahan na pahunche ravi, wahan pahunche kavi.
Dheeraj Kakkad
log aksar marne ke time dukh aur vedna hi prastut kerte hai per aapne to mrityu ko is andaaz me pesh kiya ki jindagi aur bhi khubsurat maloom hoti hai.
Good work keep going.
and thanks for visiting my blog.
Nishikant
प्रभात जी
आपका यह ब्लाग देखा। अच्छा लगा। आपके लिये मेरी शुभकामनायें।
दीपक भारतदीप
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