प्रेम की वीणा
मन-मन्दिर में
बजने लगी है
जाने क्यूं।
ख्वाब मिलन के
हाँ प्रियतम से
सजने लगे हैं
जाने क्यूं।
योवन की खुशबु, अंग-अंग में
महकने लगी जाने क्यूं।
चटकने लगी, अब कलियाँ भी
बागों मैं, हाय जाने क्यूं।
धड़कने लगा, दिल मेरा अब
आने को है, कोई ज्यूं।
प्रेम की वीणा
मन-मन्दिर मैं
बजने लगी है
जाने क्यूं।
प्रभात सर्द्वाल
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