लड़कियां लोहा होती हैं
रुपयों की मग्नेट से खींच लो
लड़कियां मक्खी होतीं हैं
शौपिंग के गुड से खींच लो
लड़कियां चत्तेर्बोक्स होतीं हैं
थोड़ा सा सुनकर, खींच लो।
अक्ल घुटनों से थोड़ा नीचे होती है
शक्ल मकेउप की परतों के पीछे होती है
मीठी जबान के पीछे
लड़कियां, विष भरी तलवार होतीं हैं
लड़कियां लोहा होतीं हैं।
बददिमाग बदतमीज़, हर हद से परे होतीं हैं
नखरे हद से ज्यादा और स्कर्ट हद से छोटी होती हैं,
न जाने किस चक्की का आटा खाती हैं,
तीन मैं से एक लड़की मोटी होती है,
लड़कियां लोहा होतीं हैं।
करती हैं, बातें घंटों तक, विद्वान की भाँती,
विषय होते हैं, लिपस्टिक, हेयर स्टाइल, हैण्ड बैग, फस क्रीम,
और हर शाम को बेचारे बोय्फ़्रिएन्द का दिमाग ये खातीं,
लड़कियां फालतू होती हैं
थोड़ा समय दो, और खींच लो।
प्रभात सर्द्वाल
ये कविता मात्र मनोरंजन के लिए है। कृपया अन्यथा न लें।
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