बेहद गुस्से वाले
बस अपनी चलाने वाले
हैं, मेरे बाबूजी।
जो कहैं, वो होना चाहिए
छोटों को झुकना चाहिए
इक बीडी, और एक कप चाय, हर दम उन्हें चाहिए
ऐसे हैं मेरे बाबूजी।
पर कभी-कभी
उस कठोर हृदय मैं
भावुकता भी देखि है
जब भी कभी मुझे चोट लगी
आंखें उनकी नम देखि हैं
प्रेम की ऐसी अदभुत रीती
चलातें हैं बाबूजी
हाँ, बस ऐसे ही हैं, मेरे बाबूजी।
प्रभात सर्द्वाल
1 comment:
aise hi mere babuji bhi hain
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