तेरे बारे मैं कहने के लिए
मेरे पास शब्द नही हैं, माँ
हूँ तो कवि
मगर तेरी ममता को शब्दों मैं बांद नही पा रहा।
ख़ुद रह कर आधे पेट
निवाला मेरे पेट मैं डालना
तेरे उस वात्सल्य को
केसे शब्दों मैं बदलूँ
बुखार मैं, रात भर सिर पर पट्टी बदलना
और मुझे एकटक देखते रहना
केसे लिखूं, माँ।
इतना बड़ा हो गया हूँ
मगर अब भी तेरा मेरे पीछे खाने की थाली लेकर दोड़ना
और जबरदस्ती, बड़े प्यार से मुझे रोटी खिलाना
तेरे उस अप्रतिम स्नेह को
केसे करूं शब्दों मैं प्रवर्तित।
तुझे क्या इश्वर कहूँ
या, तू उससे भी बड़ी हैं
क्यूं की वो तो कभी मुझे देखने नही आया
कभी जानने नही आया, की मैं केसा हूँ
माँ, तू उससे भी बड़ी है
और हाँ, मेरे शब्द और लिपियाँ
बहुत छोटी हैं, तुझे परिभाषित करने के लिए।
प्रभात सर्द्वाल
No comments:
Post a Comment