अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

05 December 2009

मेरे बाबूजी

बेहद गुस्से वाले
बस अपनी चलाने वाले
हैं, मेरे बाबूजी।

जो कहैं, वो होना चाहिए
छोटों को झुकना चाहिए
इक बीडी, और एक कप चाय, हर दम उन्हें चाहिए
ऐसे हैं मेरे बाबूजी।

पर कभी-कभी
उस कठोर हृदय मैं
भावुकता भी देखि है
जब भी कभी मुझे चोट लगी
आंखें उनकी नम देखि हैं
प्रेम की ऐसी अदभुत रीती
चलातें हैं बाबूजी
हाँ, बस ऐसे ही हैं, मेरे बाबूजी।

प्रभात सर्द्वाल

1 comment:

kishore ghildiyal said...

aise hi mere babuji bhi hain