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30 January 2010

सागर



शाम का वक़्त
बहता सागर
याद दिलाता
यादों की
कुछ लम्हों की
कुछ बातों की
शाम का वक़्त
बहता सागर।

लहरें लहरों के पीछे भाग रहीं
जैसे उनींदी आंखें जाग रही
हल्का सा शोर है मौसम में
भीनी सी खुशबू मिटटी में
में सब कुछ देखे जाता हूँ
शाम का वक़्त
बहता सागर।

ये सागर भी न जाने कब से
यहाँ पड़ा बहता जाता है
यूं लगता है जैसे
खुद से एक कविता कहता जाता है
शाम का वक़्त
बहता सागर।

प्रभात

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