अच्छा लगा आपका आना - फुरशत मिले तो जरूर दो चार पंक्तिया पढें....हँसते रहिये, मुश्कुराते रहिये, और जीवन को इसी खूबसूरती से जीते रहिये...आपका....प्रभात

15 November 2009

मेरा गाँव

बड़ा प्यारा है, मेरा गाँव
हाँ, बड़ा प्यारा है
भीड़-भाड़ से दूर
शोर शराबे से दूर
पहाडों मैं बसा हैं, मेरा गाँव।

न जाने क्या पाना था
जो छोड़ दिया वो गाँव
और फिर वापस मुड़ने का
मोका न मिला
लेकिन लगता है
आज भी मेरे इंतज़ार मैं
आंखें बिछाये खड़ा है
मेरा गाँव
बड़ा प्यारा है, मेरा गाँव
हाँ, बड़ा प्यारा है।

प्रभात सर्द्वाल

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Anonymous said...

Accha liktain hain Prabhat Ji,
Hamain apne gaon ki yaad aa gayee.
Rajeev Sinha